Monday, July 4, 2011

संस्थानों की साख

हाल ही में जयराम रमेश ने बयान दिया था कि हमारे आईआईटी और आईआईएम जसे संस्थानों की साख वहां पढ़ने वाले छात्रों की वजह से है, सच्चाई ये है कि वहां अंतरराष्ट्रीय स्तर के शिक्षकों की बेहद कमी है। इस बात से काफी बवाल मचना शुरू हो गया। इसके बाद प्रख्यात वैज्ञानिक और प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार समिति के चेयरमैन सीएनआर राव ने भी कहा हमारे आईआईटी और आईआईएसी विश्वस्तरीय नहीं है। भारत के किसी भी संस्थान की तुलना हम एमआईटी या फिर कैंब्रिज जसे संस्थान से नहीं कर सकते हैं। इनकी बातों में सच्चाई है या नहीं ये तो नहीं पता। पर इन बातों ने हमारे शिक्षा-व्यवस्था के बारे में गंभीरता से विचार करने पर मजबूर कर दिया है। क्या सचमुच देश के शीर्ष संस्थानों की यह दशा है? और इसका कारण क्या है? क्या इन संस्थानों में ऐसी शिक्षा दी जा रही है कि यहां पढ़ने वाले छात्र अपने-अपने क्षेत्रों में महारत हासिल कर लेगें।

कुछ दिनों पहले एक फिल्म थ्री इडियट का एक डॉयलाग बहुत ही मशहूर हुआ था कि ज्ञान के पीछे भागो। पर हमारे शिक्षा संस्थान जो ज्ञान के मंदिर है वे क्या सही और ऐसा ज्ञान अपने छात्रों को मुहैया करा रहे हैं कि वे आगे चलकर इसका सही उपयोग कर सके। उस फिल्म में दिखाया गया कि हमारे ज्यादातर छात्र अपने करियर को लेकर अनिश्चित रहते हैं। वह स्थिति आज ज्यादातर हमारे संस्थानों में दिख रही है। हमारे देश के शीर्ष संस्थान आईआईटी जसे संस्थान में पढ़ने वाले छात्र भी यह सोचते है कि वे अपने विषय में आगे पढ़ाई करे या फिर एमबीए जसे प्रोफेशनल कोर्स करके पैसा कमाए। हमारे टॉप संस्थानों में पढ़ने वाले छात्रों का यह हाल है तो बाकी जगहों के बारे में क्या कहना?

दरअसल उदारीकरण आने के बाद हमारे शिक्षा संस्थानों का मकसद बदल गया है। पहले जो संस्थान ज्ञान के मंदिर हुआ करते थे वहीं आज उनका उद्देश्य बदल गया है। आज ज्यादातर संस्थानों के विज्ञापन में लिखा होता है। सालाना 3-5 लाख का पैकेज और शत-प्रतिशत प्लेसमेंट। वे अपने संस्थान में पढ़ाई के माहौल के बारे में विज्ञापन नहीं देते हैं और ही वहां के योग्य शिक्षकों के बारे में विज्ञापन देते हैं। अब ये छात्रों को निर्धारित करना होता है कि वे इस पैकेज के तरफ भागेंगे या फिर शोध करके बेहतर शिक्षक बनेंगे। पैसे वाली शिक्षा आज की मुख्य जरूरत है लेकिन सरकार को यह ध्यान देना होगा कि इन छात्रों को प्रशिक्षण देने वाले शिक्षक भी आला दज्रे के समझदार हों और बेहतर शिक्षा अपने छात्रों को दें। हमारे यहां एमबीए और अन्य प्रोफेशनल कोर्सो के संस्थान कुकुरमुत्ते की तरह उग रहे हैं। पर वहां पर पढ़ाने वाले शिक्षक स्वयं अच्छी तरह से प्रशिक्षित नहीं होते हैं। ज्यादातर छात्र स्वयं वह कोर्स पूरा करते है और वहीं पर शिक्षक होकर वे आने वाले छात्रों को प्रशिक्षण देने लगते हैं।

इसका कारण यह है कि हमारे यहां शोध की कोई व्यवस्था नहीं है। छात्र पैसे कमाने के लिए इतने बेचैन है कि वे शोध के लंबे समय को बर्बादी समझने लगे हैं। अपनी बात करते हुए सीएनआर राव ने कहा कि भारत गांवों का देश है और आज भी उच्च शिक्षा में पहुंचने वाले गांव के साठ प्रतिशत से ज्यादा युवा शोध करने के लिए आते हैं, जबकि बंगलुरु और दिल्ली जसी जगहों पर से आने वाले बच्चे प्रोफेशनल कोर्सो की तरफ भाग जाते हैं।

अब सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि जो बच्चे शोध की तरफ जा रहे हैं उनका भविष्य बेहतर हो। नहीं तो हमारा हाल और भी बुरा होने वाला है। बड़े महानगरों के छात्र भी शोध के तरफ जाएं जिससे हमें योग्य शिक्षक मिल सके और हमारे छात्रों का भला हो सके। सरकार को ऐसा माहौल बनाना होगा कि हमारे युवा शोध को भी अपना लक्ष्य बनाए, नहीं तो आने वाले समय में हमें अच्छे शिक्षकों की और भी कमी महसूस होगी।

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