Monday, July 4, 2011

युवा नहीं बीमार भारत

उदारीकरण के बाद से हम हर छमाही अपनी आर्थिक वृद्धि का डंका पीटते हैं, लेकिन इस आर्थिक विकास ने हमें कितना बीमार बना दिया हम इसका आकलन नहीं कर रहे हैं। श् िसस्थ्य संगठन ने अपने 2011 की हालिया रिपोर्ट में कहा कि आधुनिक जीन शैली की जह से लोग कई बीमारियों की चपेट में हैं। ये बीमारियां अब गरीब देशों को अपनी गिरफ्त में ज्यादा ले रही हैं। रिपोर्ट के अनुसार सही खान-पान नहीं होने और बेतरतीब रहन-सहन से लोगों में हृदय रोग, कैंसर और मधुमेह जसी बीमारियां तेजी से फैल रही हैं। शहरीकरण और ग्लोबलाइजेशन की तेज रफ्तार ने लोगों के बीच आधुनिक जीन शैली को लोकप्रिय बना दिया है। इस शैली ने बीमारियों के ैश्कि परिदृश्य को ही बदल दिया है। पहले संक्रमण से संबंधित बीमारियां गरीब देशों की पहचान होती थी। भारत में इसी तरह की बीमारियां फैलती रही हैं। हैजा, मलेरिया और अन्य बीमारियां भारत की पहचान होती हैं। पर उदारीकरण के बाद गैर संक्रमित बीमारियों ने भारत को अपना आशियाना बना लिया है।

भारत की सस्थ्य सुधिाएं पहले से ही दयनीय दशा में हैं। अचानक संक्रामक बीमारियों का प्रसार अधिकतम मातृ एं शिशु मृत्यु दर का कारण बनता है। बड़ी संख्या में गरीब इन बीमारियों का शिकार बनते हैं। हीं बढ़ते ैश्ीकरण और शहरीकरण के कारण गैर संक्रमित रोगों में इजाफा हुआ है। देश गरीब और समृद्घ, दोनों र्ग के लोगों को होनेोली बीमारियों के दोहरे बोझ का सामना कर रहे हैं। पिछले दशक में अधिक आर्थिक ृद्घि के बाजूद भारत अब भी उन देशों में से एक है जहां दुनिया में बीमारियों की जह से र्साधिक बोझ पड़ता है, और यह दोतरफा है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में रोगियों की संख्या में तेजी को देखते हुए सरकार को र्तमान सस्थ्य सेाओं पर 32 डॉलर प्रति व्यक्ति प्रति र्ष खर्च में बढ़ोतरी करने की जरूरत है। किसित देशों की तुलना में यह राशि 140 गुना कम है, क्योंकि समृद्घ देशों में र्तमान में प्रति व्यक्ति प्रति र्ष 4590 डॉलर खर्च की जाती है। इस प्रकार गरीब देश जहां अपनी जीडीपी का 5.4 फीसदी हिस्सा ही सस्थ्य सेा पर खर्च करते हैं, हीं धनी देश अपनी जीडीपी का 11 फीसदी हिस्सा सस्थ्य सेा पर खर्च कर रहे हैं।

इन बीमारियों से बचाव का हमारा एजेंडा कितना कमजोर है यह इस बात का सिर्फ एक नमूना है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि बाकी देशों की तुलना में हमारे यहां डॉक्टरों और नर्स की कितनी कमी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि किसित और ज्यादा आयोले देशों में भारत की तुलना में दस गुना अधिक प्रशिक्षित डॉक्टर, 12 गुना नर्स दाइयां और 30 गुना दांत के डॉक्टर रात-दिन मरीजों की देखभाल में जुटे रहते हैं। यानी हम सिर्फ अपने आर्थिक विकास की बांसुरी ही बजा रहे हैं।

शहरी क्षेत्रों में हमारी स्वास्थ्य सेवा सुधर रही है लेकिन देश के ग्रामीण क्षेत्रों में सस्थ्य सेा की बदहाल हैं। बदलती जीवनशैली का प्रभाव गांवों पर भी पड़ रहा है। वहां भी अब गैर संक्रामक बीमारियों का प्रसार तेजी से हुआ है। ऐसी स्थिति में वहां स्वस्थ जीवन की तलाश और मुश्किल होता जा रहा है। इस पूरी रिपोर्ट में सिर्फ एक बात जो हमारे लिए राहत की है वह यह कि र्ष 2000 में देश में जहां लोगों की जीन प्रत्याशा 61 र्ष थी, हीं 2009 में बढ़कर 65 र्ष तक हो गयी है।

डब्लूएचओ की रिपोर्ट के आधार पर हम यदि अपने स्वास्थ्य सेवाओं का आकलन करे तो पूरी तस्वीर बेहद अफसोसजनक है। इसके लिए हमारी सरकार को इस क्षेत्र में जल्द ही कुशल रणनीति बनाने की जरूरत है। एक ऐसी रणनीति जो हमारी बीमार बनती जा रही जनता को बीमारियों से दूर करे। नहीं तो वह दिन दूर नहीं है जब हम युवा भारत के बजाय बीमार भारत की डंका दुनिया में पीट रहे होंगे।

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