Monday, July 4, 2011

बदहाल स्वास्थ्य और महाशक्ति भारत

महाशक्ति बनते भारत की खबर पिछले कई सालों से दुनिया भर की पत्रिकाओं की मुख्य खबर होती है। हम दुनिया की महाशक्ति बन रहे हैं यह सोचकर हम कितने खुश होते हैं, लेकिन इसी खुशी के बीच हम भूल जाते हैं कि हमारी सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएं बदतर हैं। पिछले दशक में तेज आर्थिक ृद्घि के बाजूद भारत अब भी उन देशों में से एक है जहां दुनिया में बीमारियों की जह से आम आदमी पर र्साधिक बोझ पड़ता है। भारत में रोगियों की संख्या में तेजी को देखते हुए सरकार को र्तमान सस्थ्य सेाओं पर लगभग तेरह सौ रुपए प्रति व्यक्ति प्रति र्ष खर्च में बढ़ोतरी करने की जरूरत है। किसित देशों की तुलना में इस राशि से 140 गुना ज्यादा खर्च किया जाता है, क्योंकि समृद्घ देशों में र्तमान में प्रति व्यक्ति प्रति र्ष 4590 डॉलर खर्च किए जाते हैं। इस प्रकार गरीब देश जहां अपनी जीडीपी का 5.4 फीसदी हिस्सा ही सस्थ्य सेा पर खर्च करते हैं, हीं धनी देश अपनी जीडीपी का 11 फीसदी हिस्सा सस्थ्य सेा पर खर्च कर रहे हैं।

स्वास्थ्य सेवाओं में चीन ने तेजी से सुधार किया है। कुछ ही दिनों पहले चीन ने 124 बिलियन डॉलर का एक पैकेज स्वास्थ्य सुधारों के लिए दिया है। जिसके तहत 2020 तक वहां 29000 के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 2000 के करीब बड़े अस्पताल बनाए जाएंगें। जबकि हमारे देश की सरकार सिर्फ वादे ही करती है।

देश में यदि हम बीमारियों से लड़ने के लिए सरकार के प्रयास को देखें तो आंकड़े एक भयावह तस्वीर पेश करते हैं। 2010 में लोकसभा में दिए गए एक जबाब में सरकार का कहना है कि भारत में कुल 313 मेडिकल कॉलेज है। जिसमें एमबीबीएस की कुल 36,857 सीटें हैं। जबकि परास्नातक के लिए कुल 18,525 सीट ही उपलब्ध है। क्या हमारे देश की जनसंख्या को देखते हुए यह संख्या ऊंट के मुंह में जीरे के समान नहीं है। हरियाणा जसे राज्य में सिर्फ चार मेडिकल कॉलेज है और 450 एमबीबीएस की सीट है। परास्नातक लेवल पर यह आंकड़ा केवल 268 का है।

किसित देशों में भारत की तुलना में प्रतिशत के हिसाब से दस गुना अधिक प्रशिक्षित डॉक्टर, 12 गुना नर्स दाइयां और 30 गुना दांत के डॉक्टर रात-दिन मरीजों की देखभाल में जुटे रहते हैं। यानी हम सिर्फ अपने आर्थिक विकास की बांसुरी ही बजा रहे हैं। हमारे देश में आज भी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या में भारी कमी है। खासकर गांवों में। शहरी आबादी के मुकाबले गांवों में स्वास्थ्य सुविधाएं दयनीय दशा में हैं। जो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जहां बन गए है हम उनके लिए भी आज डॉक्टरोंे को उपलब्ध नहीं करा पा रहे हैं। स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की संख्या की बात ही करना बेकार है। सरकारी अस्पतालों के इस हालात का फायदा निजी क्षेत्र के अस्पताल बहुत ही तेजी से उठा रहे हैं। डॉक्टरों की संख्या के आंकड़े पर यदि हम गौर करें तो उत्तर प्रदेश में प्राथमिक स्वास्थय केन््रों पर 3690 डॉक्टरों की आवश्यकता है जबकि उपलब्धता केवल 2001 डॉक्टरों की है। वहीं स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की आवश्यकता 2060 के मुकाबले 618 डॉक्टर ही उपलब्ध हैं। हरियाणा में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में 437 के मुकाबले 427 डॉक्टरों की जरूरत है। जबकि स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की संख्या का आंकड़ा यहां भी बेहद गंभीर है। 372 डॉक्टरों की आवश्यकता होने पर 79 डॉक्टरों की उपलब्धता है।

इन आंकड़ों को देखकर भारत के बदहाल स्वास्थ्य की जो तस्वीर हमारे सामने आती है वह हमारे विकास की कहानी को बयां कर रही है। हमें यदि विकसित भारत का निर्माण करना है तो इस बात का ख्याल रखना होगा कि हमारी ज्यादा से ज्यादा आबादी बेहतर स्वास्थ्य सुविधा का लाभ उठाए। इसके लिए हमारी सरकार को चीन से सबक लेने की जरूरत है। चीन ने जिस तरह से अपने स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार का बीड़ा उठाया है कुछ उसी तरह का कदम हमारी सरकार को भी उठाना पड़ेगा।

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