Monday, July 4, 2011

सोशल मीडिया के आईने में सामाजिक क्रांति

जब हम स्कूल में पढ़ते थे, तो अक्सर ही हमें विज्ञान वरदान है या अभिशाप, विषय पर निबंध लिखने के लिए कहा जाता था। इस निबंध का उपसंहार करते समय हम यह कहकर अपनी बात खत्म करते थे, कि विज्ञान हमारे जीवन के लिए बहुत ही उपयोगी है, बशर्ते उसका सही इस्तेमाल किया जाए। यही बात सोशल मीडिया के ऊपर लागू होती है। छह महीने पहले कई सर्वेक्षणों में यह बात सामने रही थी कि सोशल मीडिया का बढ़ता प्रभाव लोगों के जीवन को बरबाद कर रहा है, कई ऐसी खबरें आईं कि फेसबुक के कारण बहुत सारे लोगों के वैवाहिक संबंधों में दरार रही है। लेकिन, इन छह महीनों में ये सारी खबरें गायब हो गईं और खबरों में छा गई दुनिया भर की फेसबुकिया क्रांति। दुनिया भर में आए इन बदलावों में सोशल मीडिया खासकर ट्विटर और फेसबुक ने अहम भूमिका निभाई है। फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग फेसबुक के अपने खास फीचर और उपयोगकर्ताओं की संख्या के लिए पहले ही बहुत मशहूर हैं, लेकिन अब दुनिया के इतिहास में बड़ा बदलाव लाने के लिए उनका नाम याद किया जाएगा। एक ऐसा व्यक्ति जिसने दुनिया भर के कई मुल्कों में बगैर किसी घातक हथियार के जनक्रांति की बयार बहा दी। इस बयार में कई मुल्कों में सत्ता पर लंबे समय से कब्जा जमाए हुए लोग हाशिए पर चले गए। इन क्रांतियों में जनता ने अभिव्यक्ति को आवाज देने के लिए फेसबुक का सहारा लिया।

फेसबुक भी दरअसल उसी साइबर मीडिया या कहेंन्यू मीडियाज् का हिस्सा है जिसके सहारे जुलियन असांजे ने विश्व भर की महाशक्तिओं को चुनौती दी और जानने के अधिकार के हवाले से वैश्विक स्तर पर सूचनाओं के लेन-देन का नारा बुलंद किया। सोशल मीडिया के उदय का अंजाम इस रूप में हमारे सामने है कि जो बातें चैनल या अखबार उठाने से डरेंगे, वह कोई एक गुमनाम सा आदमी लोगों के बीच पहुंचा देगा।

आने वाले सालों में जब क्रांतियों का इतिहास खंगाला जाएगा तो उसमें साइबर युग नाम का एक नया अध्याय होगा। इस अध्याय की पहली परिघटना होगी तहरीर चौक। जहां एक महिला ने फेसबुक पर लिखा तहरीर चौक चलो और लोग नेट की इस आभासी दुनिया से निकल कर तहरीर चौक पर उमड़ पड़े। यह सोशल मीडिया का कमाल है कि यह संदेश तेजी से पूरे मिस्र में फैल गया और तहरीर चौक की फेसबुकिया क्रांति ने दुनिया भर में आजादी की बयार बहा दी। इस क्रांति से भारत भी अछूता नहीं रहा। सशक्त लोकपाल बिल की मांग कई दशकों पुरानी थी, लेकिन अन्ना हजारे के नेतृत्व में जिस तरह से भारत में इसके मांग ने जोर पकड़ी और लोगों का जनसर्मथन मिला, वह वाकई चौंकाने वाला था। इंटरनेट पर यह आंदोलन बहुत ही तेजी से फैला। फेसबुक पर बने इंडिया अगेंस्ट करप्शन पेज पर अब तक करीब पचासी हजार लोग जुड़ गए, जबकि इसके बेबसाइट से करीब ग्यारह लाख लोग जुड़े हैं। यूट्यूब पर करीब एक लाख लोगों ने अन्ना के इस अहिंसक संघर्ष को देखा है। ट्विटर की दुनिया में भी इस क्रांति का तहलका मचा हुआ है। भारी संख्या में खासो-आम और आम आदमी के ट्वीट इस आंदोलन के सर्मथन में आए। इंटरनेट की दुनिया सीमाओं से परे है, इसलिए अन्ना के इस आंदोलन को पूरी दुनिया में फैले भारतीय और विदेशियों का सर्मथन मिला।

बदलाव प्रकृति का शाश्वत नियम है, हमारी सभ्यता, संस्कृति, रहन-सहन, हर जगह बदलाव तेजी से आता रहा है। महान चिंतक माओ ने कहा था सत्ता बंदूक की नली से निकलती है। आज यह परिभाषा बदल गई है। आज सत्ता सोशल मीडिया के सहारे हासिल की जा रही है। आज की दुनिया में क्रांति का सबसे बड़ा हथियार फेसबुक बन गया है। भारत में हमने पिछले कई सालों से लोगों को जाति के लिए, धर्म के लिए एक होते देखा था। भ्रष्टाचार इस देश में नासूर की तरह पिछले कई सालों से छाया हुआ था, पर भ्रष्टाचार के नाम पर पूरे देश में आंदोलन नये साइबर युग में ही संभव हुआ।

पत्रकारों का कब्रगाह बनता पाक

एक आकड़े के मुताबिक पाकिस्तान में पत्रकार सलीम शहजाद की हत्या के साथ ही पिछले चौदह महीनों में मारे गए पत्रकारों की संख्या सत्रह हो गई है। आतंकवाद से प्रताड़ित पाकिस्तान दुनिया का एक ऐसा देश बनता जा रहा है जहां पत्रकार सुरक्षित नहीं हैं। चालीस साल के शहजाद एशिया टाइम्स ऑनलाइन के ब्यूरो चीफ थे, और अपनी निर्भीक पत्रकारिता के लिए जाने जाते थे। पिछले रविवार को वे अपने घर से गायब हो गए थे और मंगलवार को उनका मृत शरीर प्राप्त किया गया। उनके शरीर पर हत्या के पहले चोटों के निशान पाए गये थे। माना जाता है कि उनकी हत्या करने से पहले उन्हें काफी यातना दी गई थी। इस्लामाबाद में रहकर दुनिया और अपने देश की कलम से सेवा करने वाले इस सिपाही की यातनापूर्ण हत्या में पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई का हाथ होने की आशंका जताई जा रही है। शहजाद ने मानाधिकार संस्था मून राइट्स ॉच को धमकी से भरे मेल की सूचना दी थी और बताया था कि भविष्य में उनकी जान को खतरा है।

गौरतलब है कि अपनी खोजी रिपोर्टिग के कारण शहजाद आईएसआई के निशाने पर आते रहे हैं। पिछले साल अक्टूबर में जब उन्होंने अफगानी तालिबान के एक बड़े नेता की पाक में गिरफ्तारी की खबर दी थी, तब आईएसआई ने उन्हें धमकाया था। इसके अलावा उनकी रिपोर्ट अलकायदा का पाक नौसैनिक अड्डे पर हमले का कारण अलकायदा हितैषी नौसेना के अधिकारियों पर शिकंजा कसना है, दूसरा बड़ा कारण माना जा रहा है। इस रिपोर्ट ने पाक सेना में अलकायदा घुसपैठ को बड़े सिरे से उजागर किया था।

शहबाज के परिवार वालों का कहना है कि उनकी किसी से जाती दुश्मनी नहीं है लेकिन वे शायद इस बात पर नहीं गौर कर रहे है कि अपने निर्भीक रिपरेटिंग से शहबाज ने कितने दुश्मन बना रखे हैं। पाकिस्तान में इस तरह का कोई भी साहसिक काम खतरनाक होता है। कुछ ही समय पहले सलमान तासीर सहित दो नेताओं की ईशनिंदा कानून का रिोध करने पर हत्या कर दी गई थी।

शहबाज की हत्या करके पाक के कट्टरपंथियों ने पत्रकारिता आवाम को साफ संदेश देने का प्रयास किया है कि वे अपने विरोध में उठने वाली आवाज को दबाने का हुनर जानते है। पाकिस्तान एक ऐसी जगह बन गया है जहां आंतकी सेना से लेकर सरकार के बीच गहरी पैठ बना रखे हैं। उनके खिलाफ बोलना और लिखना मौत को आमंत्रण देना है। कट्टरपंथियों की इस कार्रवाई पर सरकार भी बेबस और लाचार नजर रही है।

पाक सरकार ने पत्रकारों की सुरक्षा से परोक्ष रूप से हाथ खींच लिए हैं। सैयद सलीम शहजाद के अपहरण और फिर हत्या के बाद सरकार ने पत्रकारों को अपने पास छोटे हथियार रखने की अनुमति देनेोला आदेश पारित कर दिया है। पाकिस्तान के आंतरिक मामलों के मंत्री रहमान मलिक ने बुधार कोजियो न्यूजज् से बातचीत में इस बात की जानकारी दी थी। शायद पाक सरकार ने बंदूक रखने की अनुमति देकर अपना काम पूरा समझ लिया है। उन्हें ये सबसे आसान रास्ता लगा। आने वाले दिनों में हम शायद कलम और कैमरे की ताकत से दुश्मन पैदा करने वाले पाक पत्रकारों अब कलम और कैमरे के साथ बंदूक भी रखते नजर आएंगे। क्योंकि सरकार उनकी हिफाजत करने में असमर्थ है। ऐसी स्थिति में लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा कैसे होगी यह देखने वाली बात होगी। पाक पत्रकार बंदूक के साथ अपनी भूमिका कितने अच्छे से निभाएंगे, यह भी आने वाला वक्त बताएगा।

पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने शहजाद के अपहरण तथा हत्या पर गहरा दुख व्यक्त किया और कहा कि सरकार दोषियों के खिलाफ कार्राई के लिए प्रतिबद्घ है। सरकार मीडिया की आजादी और लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ाा देने में यकीन रखती है।

पाकिस्तान की जनता और दुनिया भर का मीडिया चाहता है कि पाक में मीडिया की आजादी हो और इस तरह की घटना दोबारा हो। लेकिन ऐसी स्थिति आए इसके लिए पाक सरकार को राष्ट्रपति के बयान पर खरा उतरना होगा।